माँ ( मातृ दिवस )
दिनांक 10/5/20
कहा , चाँद ने
“क्या निहरते हो तुम ? मुझ में
प्रेमिका, मेहबूबा
की शक्ल पाओगे हमेशा”
कहा मैंने
” आज तलाशता हूँ तुझ में
बस
माँ मेरी , माँ सब की
माँ दुनियां की ”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिनांक 10/5/20
कहा , चाँद ने
“क्या निहरते हो तुम ? मुझ में
प्रेमिका, मेहबूबा
की शक्ल पाओगे हमेशा”
कहा मैंने
” आज तलाशता हूँ तुझ में
बस
माँ मेरी , माँ सब की
माँ दुनियां की ”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल