माँ-ममता की निधि
“माँ” -ममता की निधि
कुछ आँसू ममता के होंते
कुछ खुशियो के ढ़र जाते है ।
कुछ तखलीफो के सागर में
मिलकर मोती बन जाते है ।
फिर भी लाती चुनकर ख़ुशियाँ
हर इक ताने बाने से ।
ममता की निधि देकरके वह
मर मिटती मुस्काने से ।
माँ के आँचल मे जन्नत है
आँचल की छाया मे प्यार ।
मिला जिसे वो धन्य हो गया
जड़ जङ्गम सारा संसार ।
चाहे माँ की वह लोरी हो
हो चाहे रूखा ब्यवहार ।
माँ से अलग नही हो सकता
माँ, माँ की ममता का प्यार ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
रकमिश सुल्तानपुरी
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश