माँ भारती
भोर हो गयी अब, रण में लड़ने जाऊँगा
पीकर लहू शत्रु का, अपनी प्यास बुझाऊंगा
बहुत देख चूका लहू अपनों का, अब चुप कैसे रह पाऊंगा
कसम भारती की है मुझको, अब कुछ ऐसा कर जाऊँगा
शहादत अपने सेनानियों की, अब बेकार ना जाने दे पाऊंगा
काट दूंगा शीश शत्रु का, वीर पुरुष कहलाऊंगा
मर भी गया तो क्या , अमर बलिदानी कहलाऊंगा
जाऊँगा पर जाते-जाते, नाम हिन्द का कर जाऊँगा
देखेगी,सोचेगी जिसको दुनिया, रंग में ऐसे सबको रंग जाऊँगा
दिल सबका अपना होगा, धडकन अपनी दे जाऊँगा
संतप्त चित को भी मै, सूर्य की तरह दहला जाऊँगा
हिन्द के लिए अर्पण अपना, सब कुछ कर जाऊँगा
एक दिन मै भी, माँ भारती के आँचल में सो जाऊँगा