माँ पर गीत
तुम पर कोई गीत भला कैसे लिख पाऊँ?
लिखा गया हूँ मैं ही स्वयं तुम्हारे द्वारा।
माँ तेरी ममता का पार कहाँ से पाऊँ?
कैसे शब्दों का असीम भण्डार जुटाऊँ?
तन के पृष्ठ बनाऊँ कैसे पहले ही जब,
रोम रोम पर माता अंकित नेह तुम्हारा।
गले लगूँ तो आँखें तेरी निर्झर बनकर।
चिर आह्लाद बहाती हैं मेरे कंधो पर।
मन पुलकित होता है तन पावन पावन सा,
ज्यों मुझको नहलाती हो गंगा की धारा।
तेरे उपकारों की कोई तोल नहीं है।
ममता करुणा दया क्षमा का मोल नहीं है।
हिय! तूने यदि चाहा हो यह ऋण लौटाना,
करदे श्रीचरणों में अर्पित जीवन सारा।
संजय नारायण