*माँ : दस दोहे*
माँ : दस दोहे
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(1)
बेटे-बहुओं को दिया , अपने था जो पास
फिर जाने क्या सोचकर ,अम्मा हुई उदास
(2)
बेटे-बहुएँ चल दिए , पकड़े अपने हाथ
बूढ़ा तन माँ का रहे ,बोलो किसके साथ
(3)
जिनके पोछे मूत्र-मल , जागी भर-भर रात
उनको फुर्सत अब कहाँ ,सुन लें माँ की बात
(4)
पोते – पोती देखते , भरते मन में राज
कल माँ का भी आएगा ,दादी का जो आज
(5)
फोटो पर माला चढ़ी ,हुआ मरण का भोज
माँ को अब देनी नहीं , होगी रोटी रोज
(6)
कर्कश स्वर घर में बसे ,पैसों की तकरार
माँ बेचारी सुन रही ,जिंदा क्यों भू-भार
(7)
अंत समय जब चाहिए , मन के मीठे बोल
बेटे – बहुएँ आँकते , चूड़ी की बस तोल
(8)
किससे अपना दुख कहे ,किसको दे-दे शाप
आँसू पीती माँ पड़ी , खटिया पर चुपचाप
(9)
बूढ़ी माँ को कौन अब ,रखता अपने साथ
ईश्वर से है प्रार्थना , जाए चलते हाथ
(10)
पुनरावृत्ति वही हुई ,फिर से वह परिणाम
“बूढ़ी काकी” हो गया , वृद्धा माँ का नाम
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451