माँ थाम के ऊँगली तेरी ..हर रिश्ता पीछे छोड़ चला।
माँ थाम के ऊँगली तेरी ..हर रिश्ता पीछे छोड़ चला।
बीती यादों के संग ही अब देख नाता जोड़ चला ।
सुख के दिन बीत रहे थे .थाम पिता की ऊँगली ।
समय चक्र कैसा घूमा रह गयी स्मृतियाँ छिछली।
एक निष्ठुर गोली चली .सारा..जीवन लील गयी ।
आतंकी दृष्टि से देखो सारा मंजर छील गयी।
वैधव्य का श्राप मिला ओर मेरा खिलौना तोड़ चला ।
पग बढ़ते हैं आगे आगे ..पीछे नयना रुकते से ।
बहती अँसुवन धार से सपन लगे अब थकते से।
थपकी देकर जगा-सुलाते ,वो स्पर्श रूठ गया ।
माँ ,तेरे -मेरे जीवन का सुख स्रोत भी सूख गया
मत दुखी हो .तेरा सँबल मैं बन राहें मोड़ चला ।
लंबा जीवन लाल मेरे ..दुर्गम पथरीली राह
नन्हेंनन्हें पाँव हैं तेरे …,और कंकरीली राह
धूप छाँव की आँख मिचौली सुख दुख रीते
किस तरुवर की छाँव गहूँ ,जो जीवन बीते।
अपनों ने छोड़ा ,जग ने तोड़ा ,लगा होड़ चला।।
स्वरचित ,मौलिक अप्रकाशित
@पाखी