माँ तो माँ होती है
माँ तो माँ होती है
अपने शिशुओं के लिए
अपना वजूद खोती है
क्योंकि . . . . .
माँ तो माँ होती है
ढाँप लेती है माँ
अपनी संतति के
अवगुणों को भी
ज्यूँ छिपा लेते हैं
वारिद तापधर को
वो स्व ठिठुरती
पर संतान को
मलमल ओढा़ देती है
क्योंकि . . . . .
माँ तो माँ होती है
उसके तन पर
होता है वही
फटेहाल वसन का
एक टुकडा़
पर तनय को अपने
रेशमी वस्त्र
पहना देती है
क्योंकि . . . .
माँ तो माँ होती है
निश्छल प्यार की
प्रतिमूर्ति वो
दुलार नेह की
खान है जो
स्वयं को तपाकर
बच्चों को छाँह देती है
क्योंकि . . . . .
माँ तो माँ होती है
ममत्व की बहती है
अनवरत् धार उसमें
अपने लाड़ले के लिए है
अनंत रसधार उसमें
खुद छली जाए
पर उन्हें न छलती
न छलने देती है
क्योंकि . . . .
माँ तो माँ होती है
पानी की तरह
तरलता उसके
कण-कण में बसती
ले ले बलइयाँ
नज़र उतारती
वश में हो उसके
तो त्रयलोक वार दे
क्योंकि . . . . .
माँ तो माँ होती है
बन कुंभकार माँ
अपने बच्चों को गढ़ती है
माँ ही सर्वप्रथम
शिशु को
परिष्कृत करती है
वो शिक्षिका बन
बच्चों को संस्कार
सिखाती है
सदा काम आए जो
वो भाग्य बना देती है
क्योंकि . . . . . .
माँ तो माँ होती है
ईश्वर ने धरा-सुतों के लिए
ये संदेशा भेजा है
करलो इबादत माँ-बाप की
प्रभु ने अपने स्थान पर
जो उनको भेजा है।
सोनू हंस