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25 Jan 2024 · 1 min read

माँ तुम सचमुच माँ सी हो

कभी जेठ की तप्त दोपहरी
कभी शीतल बयार-सी हो
क्रोध,प्रेम,चिंता,उर लाए
माँ तुम सचमुच माँ सी हो।

कभी सुदृढ हिमालय सी तो
कभी कोमल गुलाब सी हो
मेरे जीवन-गढ़ की प्रहरी
माँ तुम सचमुच माँ सी हो।

कभी अल्हड़ वाचाल सखी-सी
कभी तुम मौन साधिका-सी
मेरा मन तुम निसदिन पढती
माँ तुम सचमुच माँ सी हो।

तुम प्रभात की मधु स्वर लहरी
कभी छटा संध्या की हो
तेरी उपमा दूँ मैं किससे
माँ तुम केवल माँ सी हो।

डॉ. मंजु सिंह गुप्ता

Language: Hindi
1 Like · 140 Views
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