माँ, तुम्हीं तो हो
माँ, तुम्हीं तो हो….
माँ, तुम्हीं तो हो नींव परिवार की,
तुम्हारें बिना अधूरी है,जिंदगी सभी की ।
माँ, साधारण- सा वाक्य भी अधूरा बिना क्रिया के,
मैं भी असहाय हूँ, बिना तेरे आँचल के ।
माँ, तुम्हीं तो हो, जो अपने दामन में समा लेती है, मुसीबतों के सैलाब,
छू भी नहीं पाते है, मुझको वे सैलाब ।
माँ, खेतों में बीज फूटते है, खिल जाती है क्यारियाँ,
पर मुझे तो मिलता सुकून जब सुनाती तुम लोरियाँ ।
माँ, तुम्हीं तो हो, जिसने ना जाने कितनी रातें काटी, बिना पलक झपकाए,
नहीं उतार सकते तेरा क़र्ज, क्यो डरते है? सब करने से तेरी सेवा ।
माँ, ख्वाब देखा, हिमालय और सागर बोले, “मुझ में समा जा छू लेगा ऊँचाईयों को ।”
फिर तुझे देखा माँ तुमने कहा, “धैर्य रख, मत भाग झूठी दुनिया के पीछे, छू लेगा ऊँचाईयों को ।”
माँ, तुम्हें क्या कह कर पुकारू,
संस्कारो की देवी…
लोरियों की रानी…
मंत्रों की खुशबू…
माँ, तुम्हीं तो हो, मेरी पहचान , माँ, तुम्हीं तो हो, मेरी ताकत,
माँ, तुम्हीं तो हो, विश्वास….मेरी मुस्कान
सजता है,मन मंदिर तुझसे माँ…..