माँ तुझे प्रणाम
माँ तेरे चरणों में सादर वंदन ..
क्या लिखूं मैं माँ के बारे में खुद माँ ने ही तो मुझे लिखा है,
इस जग में आकर सब कुछ मैंने माँ से ही तो सीखा है।
खुद गीले में सो कर भी सूखे में मुझे सुलाती थी,
रात रात भर जाग जाग कर लोरी मुझे सुनाती थी।
जब चलना मैं सीख रहा था हर कदम लड़खड़ाता था,
तब उँगली पकड़कर तूने ही माँ चलना मुझे सिखाया था।
अपने मुँह का भी निवाला तूने मुझे खिलाया था,
खुद की भूख प्यास को भूल कर चैन से मुझे सुलाया था।
स्कूल जाने से पहले तूने मुझे पढ़ाया था,
मेरे स्कूल के पहले दिन पर तेरा मन घबराया था।
घर लौटने पर तूने मुझे सीने से अपने लगाया था,
ममता की शीतल छाँव देकर हर धूप से मुझे बचाया था।
ढेरों सवाल पूछ पूछ कर माँ मैंने तुझे कितना सताया था
एक बार भी गुस्सा दिखा कर तूने कहाँ मुझे चुप कराया था।
स्कूल में कॉलेज में तू मुझे हरदम याद आती थी,
जब भी मैं हिम्मत हारा तो हौंसला तू बढ़ाती थी।
जीवन के हर पथ पर तेरी नसीहत याद आती थी,
मेरी तरक्की के लिए तू हर भगवान को मानती थी।
सदा खुश रहे तू माँ मेरी उम्र भी तुझे लग जाए,
तेरी हर कष्ट पीड़ा हमेंशा के लिए मिट जाए।
तेरी हर कष्ट पीड़ा हमेंशा के लिए मिट जाए।
सुमित मानधना ‘गौरव’