” माँ ” जब मुझको डराती है….
सताती है रुलाती है तो बस तू याद आती है
कोई चिन्ता जलाती है तो बस तू याद आती है
अँधेरे मन के कोनों में छिपी बैठी ये तकलीफें
“माँ”जब मुझको डराती है तो बस तू याद आती है
कभी लू के थपेड़ों को चीरती सी हवा शीतल
हाथ सर पर फिराती है तो बस तू याद आती है
सर्द मौसम की रातों में यकायक ख्वाबों में आकर के
कोई चादर ओढ़ाती है तो बस तू याद आती है
बहुत तूफानी बारिश में छतें खुद भीग जाती है
मगर मुझको बचाती है तो बस तू याद आती है
कभी कई रोज से भूखी चिरैया दिल के टुकड़ों को
हँस हँस दाना चुगाती है तो बस तू याद आती है
दूर परदेस में जब भी सुबह खिड़की पे आकर के
किरण कोई मुस्कुराती है तो बस तू याद आती है
—दयाल योगी