“माँ गुणों की खान”
**माँ फूली नहीं समाती,
जब कोई बच्चा प्यार से,
सिर्फ माँ भर बोल देता है,
.
कृति है वो उसके स्वप्नों की,
जीवन है वो उसका,
प्राणों से है वो प्यारा,
.
राजदुलारे को देख वह,
पहली बार चिंतित हो जाती,
जब गुलाम दूसरों का पाती,
.
टूट गई उसकि हर आशा,
बिखर गए सब उसके सपने,
फिर सोचती है,
धोखा खोजती है,
.
बच्चा अपाहिज़ क्यों रह गया अपना,
फिर अंदर ही अंदर खूब रोती है,
और खुद को ही जिम्मेदार ठहराती है,
फिर भी उसे जिगर का टुकड़ा वो कहती है,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
महादेव क्लीनिक रेवाड़ी(हरियाणा).