माँ-(गीत)-सुधीर मिश्र
“माँ”(गीत)✍?सुधीर मिश्र
तीर्थ कोई भी पावन भले घूम लो, दूसरी कोई दुनियां में सूरत नहीं।
देवियों से भी ज्यादा है ममतामयी, माँ के जैसी कोई और मूरत नहीं।।
जिसके आँचल की छाया में खेले कभी,कोई चिंता न थी मेरी माँ है अभी।
शत्रु का वार हर बार खाली गया,माँ के आशीष से, छू न पाया कभी।
उन दुआओं का इतना असर है, मुझे अब किसी ढाल की और ज़रूरत नहीं।।
लोरियां मीठी-मीठी सुनाती थी वो,थपकियाँ देके मुझको सुलाती थी वो।
जब भी बेचैन होता था मेरा ये मन,चन्दा मामा को आँगन बुलाती थी वो।
चाहे दुनियां के मंज़र हों कितने हसीं, माँ से ज्यादा कोई खूबसूरत नहीं।।
जिसने ममता की छाया में पाला हमें,गिरते-गिरते हुए भी संभाला हमें।
जाने कितनी ही रातों को भूखी रही,दे दिया अपने मुँह का निवाला हमें।
जिसके चरणों में है चारों धामों का सुख, काशी-क़ाबा की कोई ज़रूरत नहीं।।
(माँ-विषय की प्रतियोगिता के लिए)
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित।
?✍सुधीर कुमार मिश्र”निश्छल”
घिरोर, जिला-मैनपुरी(UP),पिन कोड-205121
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