माँ गंगा
आओं गंगा को एक बार,
फिर से पावन कर देते है।
माँ इन्हें कहा हैं तो,
माँ का रूप फिर देते है।
चलो एक बार फिर अंर्तमन से,
उनको सम्मान करते हैं ।
चलो माँ का दामन पकड़ कर,
अपने मन को फिर धोते है।
माँ के आँचल को मैला करने का
जो हमनें पाप किया है ।
आज फिर उन आँचल को साफ कर,
अपना पाप हम धोते है।
गाँव-गाँव, शहर-शहर,
जो हमें जल पहुँचाती हैं ।
बिना किसी स्वार्थ के,
जो रोज हमारे काम आती है।
आज फिर अंर्तमन से दिल,
से उनका आभार मानते है।
आज फिर उनके जल को,
हम निर्मल और पावन से बनाते है।
उनके चरणों में फिर से,
अपना तन-मन अर्पण करते है।
स्वर्ग से उतरी थी जैसे धरा पर
वैसा ही रूप फिर देते हैं।
आज उन्ही रूप को फिर से,
धरती पर विराजमान करते हैं।
आज माँ के जल को शुद्ध कर,
अंर्तमन से ग्रहण करते हैं।
अपने पाप से मुक्ति पाने के लिए,
माँ के जल को ग्रहण करते हैं।
आओं फिर से हम सब दिल से
माँ का आभार व्यक्त करते है।
आओ फिर से माँ को हम सब
मिलकर पावन कर देते है।
~अनामिका