माँ के लिऐ
(कविता)
अब तो सभलजाओं
.बेबकूव हैं लोग जो मिट्टी के लिये पैसै खर्च करते हैं
और हवन पूजन करबाते हैं,
और समितियां बनाते हैं
मिट्टी की मूरत के लिये कहते हैं,लोग
माँ घर चल तूँ ,तुझे खूँब मनाते है,
मिट्टी की मूरत के लिये,
लडडू पैरा, फूल माला और बतासा खूँब मँगाते,
और अपनी माँ को दो दो रोटी के लिये तरसाते हैं
मिट्टी की मूरत को सौंक से विठाते हैं,
और अपनी जन्म दाता माँ घर से अलग भगाते हैं,
मिट्टी की मूरत 9 दिन तक खूँब मनाते है
,10 वे दिन धूमँ धाम सिराने जाते हैं ,
खुद की माँ को 9माह रखा जिसने गर्व मैं
,उसे चलने तक लजाते हैं
,और बुढ़ापे में उसको वृद्धा आश्रम छोढ़ आते हैं
मिट्टी की मूरत को एक बर्ष बिठा कर दूसरीवार ले आते हैं,
और अपनी माँ के आश्रम जाने के बाद खबर लेने तक न जाते हैं,
9दिन तक जब बैठे मिट्टी उसको खूँब मनातें हैं,
और अपनी माँ के दिन और बरषी सब भूल जाते हैं,|
लेखक___
Jayvind singh