माँ के छूने से तो पत्थर भी सँवर जाते हैं
——-+ग़ज़ल+—–
माँ के क़दमों में अगर लोग ठहर जाते हैं
ग़म के सागर को वो इक पल में उतर जाते हैं
फूल तो फूल हैं ऐ दोस्त जहां में लेकिन
माँ के छूने से तो पत्थर भी सँवर जाते हैं
चैन ता-उम्र वो पाते ही नही दुनिया में
जो भी माँ-बाप की ख़िदमत से मुकर जाते हैं
काशी काबा से बड़ा दर्ज़ा यहाँ माँ का तभी
चूम के माँ के क़दम चाहे जिधर जाते हैं
माँ की अज़मत पे कोई उँगली उठाये तो हम
सरहदें क्या है समुन्दर भी उतर जाते हैं
इल्तिज़ा ये ही ख़ुदा से है न बिछडूँ माँ से
दूर रहना हो अगर माँ से तो डर जाते हैं
माँ की नज़रों में अभी बच्चा ही मैं हूँ प्रीतम
माँ की गोदी में तो हम अब भी पसर जाते हैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)