माँ की लोरी
माँ लोरी सुना फिर से मुझें नींद नहीं आती है
बड़ा हुवा हूँ मगर अभी बचपन कहीं मेरा बाकी है,
आज तक दर्द आँसू ओर ग़म में अर्से से सोया नहीं माँ,
जो सकूँ मिलता है मुझें छांव में सो जाऊँ सोता ही रह जाऊँ माँ,
है बरसों कि थकन कितनी अब तो मेरी इन अंखियों में,
ओर मुझें तेरे आँचल में सुकूँ की दुनियाँ मिल जाती है,
तूने लगा के सीने से कि छुपा के हर ग़मो से उभारा है,
जब से छूटा है जीवन में मुझसे ये तेरा आँचल,
पल पल क्षण क्षण रोई है ये मेरी अँखियाँ तेरे ही आँचल में,
पथ राई सी ये मेरी अँखियाँ आज भी तोहरी ही बाट निहारे,
आके लगा ले तू मुझकों सीने से फ़िर आँचल में बसाले,
ग़र तूने ना किया ऐसा बह दर्द आँसू में मैं ख़ाक हो जाऊँगा,
माँ लोरी सुना फिर से मुझें नींद नहीं आती है
बड़ा हुवा हूँ मगर अभी बचपन कहीं मेरा बाकी है,
जो सकूँ मिलता है मुझें तेरे आँचल में अब भी।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”