माँ की मीठी गालियाँ अच्छी लगीं
डोर की अठखेलियाँ अच्छी लगीं
नाचती कठपुतलियाँ अच्छी लगीं
उड़ चलीं मकरंद लेकर के मगर
फूल पर ये तितलियाँ अच्छी लगीं
प्यार की बारिश लिए आगोश में
आ गिरीं जो बिजलियाँ अच्छी लगीं
तिरछी होकर देखती चुपके से जो
आँख की वो पुतलियाँ अच्छी लगीं
बेहयाई से भरे संसार में
खिड़कियों पर जालियाँ अच्छी लगीं
जब हुईं फलदार खुद ही झुक गईं
पेड़ों की हमको डालियाँ अच्छी लगीं
मीठे ये अल्फ़ाज हैं बेस्वाद पर
माँ की मीठी गालियाँ अच्छी लगीं