माँ की ममता
कैसे कैसे मेरे बेटे पाला है तुझे
खुद का भी दिया निवाला है तुझे
आज मैं वृद्ध बीमारी की मारी हुई
ऐसी हालात में घर से निकाला है मुझे ।
याद वो दिन है गिरता था जो चलने में
हर कदम वचपन में सम्भाला है तुझे
आज मैं पैर से लगडी सहारा चाहूं
इसी संपने सहारे के लिए पाला है तुझे ।
कट रहे राह में बुढापे के बचे कुछ दिन
चुभ रहा दिल मे दर्द का भाला है मुझे ।
खुश रहो दुआ है फिर भी मेरे लाला
क्योंकि बडी मुश्किलों से सम्भाला है तुझे ।
बद्दुआ कैसे दू उसको जो मेरी रूह का अंश
मैंने गर्भ में नव माह तक पाला है तुझे ।
माँ की ममता तुम्हें फिर भी दुआए देगी
तुम्हें अमृत मिले विष का मिले प्याला हैं मुझे ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र ‘विप्र ‘