माँ की कमी
माँ की कमी तब अखरती है
जब वो चली जाती है
वापस लौट कर नहीं आती
तब घर छत आँगन याद आते
माँ की कमी हर जगह लगती हैं।
माँ की कमी तब अखरती है
कोई भी त्यौहार आये
काम में पसीना छूट जाता है
कोई न कहे मेहनतकश हो
माँ तब तुम्हारी याद आती हैं।
माँ की कमी तब अखरती है
जब घर में देर से आने पर
रोटियां ठंडी हो जाती है सब्जियों में
माँ का सा जायका नहीं रहता
और मुझसे कुछ कहते नही बनता।
माँ की कमी तब अखरती है
जब रात को याद कर रोती हैं
बेटी अनमने से उठ जाती हैं
सुबह और यह नहीं कह पाती
कि में सो भी नही पाई रात भर।
माँ की कमी तब अखरती है
जब हम मुसीबत में अकेले होते हैं
करवट बदलते रहते हैं बगल में
पर हाथ धरने पर माँ नहीं मिलती
ओर बेबस बेटी तडफ़ जाती हैं।
माँ की कमी तब अखरती है
सब त्यौहारों के मौसम में
नयी चीज़ों के लिए अब किसी को
कह नही पाती न कहते नही बनता
और पैसे नहीं हैं ये सोच छोड़ देती हैं।
माँ की कमी तब अखरती है
जब में दुःख के बोझ तले दबी होती हूँ
निपट अकेले रोती हूँ और कोई
मेरे आंसू पोंछने वाला कोई नहीं होता
आप किसी से कुछ नहीं कह पाते ।
हाँ,माँ कमी तब अखरती जरूर है!
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद