माँ की एक कोर में छप्पन का भोग🍓🍌🍎🍏
मां की हाथों का खाना
संतुष्टि का क्या कहना
जग में फिर इसे कहां पाना
मिश्रिख मेवा कन्द मूल
देवों की पूजा थाली अर्पण
मां हाथों की एक कोर में
छिपा पड़ा छप्पन का भोग जो
मां थाली का इक बाल अर्पण
चंदा मामा दूर का पुड़ी पकाया
गूड़ का कह बहला फुसला करते
बाल अर्पण का इक स्वादिष्ट कोर
पेट भर खा सोते आनंद विभोर
मां भोजन में शामिल उर्जा भण्डार
जिससे पाते बाल शक्ति अपार
मां इक कोर में जग लाल का
सुरक्षित समर्पित आस भविष्य
मां की खानें में स्वादिष्ट रस मधु
जो कहीं खोजने पर मिलता नहीं
मां हाथों में अमृत कलश छिपा
इनमें बाल मंजूषा की बसती प्राण
जग में प्रतिष्ठा इनसे ही होती
मां अमृता की हाथों जग बनती
मां जैसा चाहे वैसा बाल वीर बनाती
अनुशासन शिष्टाचार सत्य अहिंसा
कर्म निष्ठा धर्म संस्कार सत्कार
मां इक कोर में है अगाद स्वाद
जग में कोई स्वादिष्ट पकवान नहीं
मां इक कोर का तनिक जबाव नहीं
सराय ढ़ावा क्या रेस्टोरेन्ट
स्टार सम्मानित हो एक होटल
विविध स्वादिष्ट भोजन का मेला
देख देख मन पेट भर जाता
पर इसमें संतुष्टि तृप्ति का स्वाद कहां
मां की एक कोर से होते तृप्त जहां
चूल्हे लकड़ी उपला की झूलसी
तावा रोटी घी भरी सरसों की साग
देश विदेश के मां की लाल
पाने आते सात समंदर पार
मां की कोर में शक्ति संतुष्टि अपार
एक कोर पाने आतुर विहवल हो
जगदीश्वर लेते धरा अवतार
लीला कर संदेश दे जाते अपरम्पार
मां कोर संतुष्टि का भू प्रमाण पड़ा
प्रेरित हो त्रिदेवों ने ली निज बाल मनु
अवतार जहां दत्तात्रेय पूजे जाते
जग में चलते इनके वंश संस्कार
मां की एक कोर में ही पा जाते
छप्पन भोगों का एक अमृत स्वाद
जग जगत जन में जाने जाते
मां की एक कोर में छप्पन का भोग 🍌
🍌🌷♥️🍓🍏🍎🛤️🌿🌷🌸🌷
तारकेशवर प्रसाद तरूण