माँ का हाल बेहाल हैं
***माँ का हाल बेहाल हैं ****
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माँ का हाल हुआ बेहाल है,
बेटे बहुओं संग खुशहाल है।
बड़ी दुआओं और मन्नतों से,
जान जोखिम से जन्मे लाल है।
जठराग्नि दिन रात सहकर ही,
कष्ट काटकर ही पाले लाल है।
गीले बिस्तर पर खुद है सोई,
सूखी सेज पर सुलाए लाल है।
भूखी प्यासी रह कर पेट भरा,
तन स्वेद से सींचे प्यारे लाल है।
जीवन की निज पूंजी गंवाकर,
कमाने लायक बनाये लाल हैं।
खुशी खुशी परिवार बसा दिए,
वधुओं के हाथों सौंपे लाल हैं।
एक माँ ने सब बच्चे पाल दिए,
माँ नहीं पलती लाचार लाल हैं।
जमीन,जायदाद मिल बाँट ली,
मंझधार खड़ी माता बदहाल है।
बूढ़ी आँखे सदा ताकती रहती,
कहाँ पर छिपे दुलारे लाल हैं।
मनसीरत माँ ममता मांगता है,
सूखे नैनो को रुलाते लाल हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
अर्द्धानिगयों