माँ का प्यार
माँ बताओ न तुम इतना
प्यार कहाँ से लाती हो
और हम सब पर तुम
इतना प्यार कैसे बरसाती हो ।
माँ बताओं न तुम मुझको
यह कैसे कर पाती हो।
माँ बताओं न तुम इतना
त्याग कहाँ से लाती हो
और खुद भुखे रह कर भी
कैसे औरो को खिलाती हो|
माँ बताओं न तुम मुझको
कैसे तुम सह जाती हो।
माँ अपना दर्द भुलाकर कैसे,
औरो का दर्द अपना लेती हो।
तुम अपने अन्दर इतना करुणा ,
दया कहाँ से लाती हो |
माँ बताओं न तुम अपने
क्रोध पर विजय कैसे पाती हो|
बिना कहे कैसे तुम माँ
हर बात मेरी समझ जाती हो।
कैसे मेरे हर प्रश्नों का,
उत्तर हँस कर दे देती हो|
माँ बताओं न तुम इतना
यह सब कैसे कर लेती हो |
माँ दिन रात कैसे
तुम काम कर लेती हो,
और बिना आराम किये माँ
तुम कैसे रह लेती हो।
इतना थक जाने पर भी माँ
चेहरे पर हँसी कैसे लाती हो |
माँ बताओं न तुम इतना ,
क्या तुम कोई परी हो,
और क्या तेरे हाथों में
कोई जादू की छड़ी है।
माँ बताओं न तुम इतना
क्या तुम कोई जादूगरनी हो |
माँ मुझको इतना बताओं
क्या तेरी छवी की कोई छवी है ।
दिल का हाल समझ ले मेरा
क्या कोई ऐसी भी लड़ी है |
माँ बताओं न तुम मुझे
चुप क्यों खड़ी हो |
मुझको तो लगता है माँ
तेरी छवी जैसी कोई छवी नहीं है,
और तेरे जैसे प्यार करने वाली
इस संसार में कही नहीं हैं।
इसलिए ईश्वर ने भी
तुमको माँ कहाँ है,
और तेरे कोख से जन्म लेकर
ममता का रस चखा है |
मुझको तो लगता है माँ
तेरी जैसी कोई मूरत ,
इस संसार में बनी नहीं है |
इस संसार में कहीं नहीं है।
– अनामिका