नुस्ख़े जैसी
मैं झलक ही जाता हूँ अकसर,
तेरे गुस्से में।
मिले राहत तुझसे मुझे ऐसा,
जैसे ” माँ ” के नुस्ख़े में।
तू रग – रग में शामिल,
तू शामिल मेरे हर किस्से में ।
तू पग – पग में हासिल,
तू हासिल मेरे जिस्म के हर हिस्से में।।
मैं झलक ही जाता हूँ अकसर,
तेरे गुस्से में।
मिले राहत तुझसे मुझे ऐसा,
जैसे ” माँ ” के नुस्ख़े में।।
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.✍✍ देवेंद्र