माँ का आॅचल
माँ तेरी मुस्कान पर कुर्बां हो जाऊं मैं ,
जितने मुझको जन्म मिले तेरा ही आंचल पाऊं मैं !
तेरी गोदी में खेला तो मुझको जन्नत की मौज मिली,
पकड़ के उंगली तेरी “माँ” मैनें देखे आँगन और गली !
मैं घुटनों पे जब चलता था तुमने चलना सिखलाया था,
दुनिया की हर रित को तुमने ही तो बतलाया था !
लफ्जों में क्या बयाँ करूं तेरी ममता की गहराई को,
तेरी दुआओं के दम पर मैनें जीता हर बुराई को !
तुम संस्कारों की देवी हो क्यों मंदिर मस्जिद जाऊं मैं,
माँ तेरी मुस्कान पर कुर्बां हो जाऊं मैं !!
लकी राजेश
हिसार (हरियाणा)