” माँ का आँचल “
माँ के आँचल का सौदा करके अपना आशियाना बना रहे,
उसके फूलों को तार-२ कर दूसरे का गुलशन महका रहे I
जिसने “भूख” नहीं देखी वो रोटी की कीमत क्या जाने ?
जिसने “प्यास” नहीं देखी वो पानी की कीमत क्या जाने ?
जिसने इज्जत नहीं देखी वो “ बहन ”की कीमत क्या जाने ?
जिसने गुलामी नहीं देखी वो आज़ादी की कीमत क्या जाने ?
माँ के आँचल का सौदा करके अपना आशियाना बना रहे,
उसके फूलों को तार-२ कर दूसरे का गुलशन महका रहे I
जुल्म इतना मत करो की नीला आसमान भी रोने लगे,
फूल-कलियाँ इस मिट्टी से खुशियों की गुहार करने लगे ,
खूबसूरत गुलदस्ते का फूल जिंदगी की भीख मांगने लगे,
दूर खड़ा माली बस सारा नजारा ख़ामोशी से देखता रहे,
माँ के आँचल का सौदा करके अपना आशियाना बना रहे,
उसके फूलों को तार-२ कर दूसरे का गुलशन महका रहे I
“ राज ” भूख, निरक्षता का साम्राज्य दिन प्रति दिन बढ़ता जाये,
गुलशन का पौधा नस्ल का चोला पहनकर बहुरुपिया बन जाये,
उसकी नज़रों में जन्म की मिट्टी की कीमत दौलत में सिमट जाये ,
तेरे नौनिहालों को अब केवल “ सबका मालिक एक ” ही बचाए ,
माँ के आँचल का सौदा करके अपना आशियाना बना रहे,
उसके फूलों को तार-२ कर दूसरे का गुलशन महका रहे I
************************************************************
देशराज “राज”
कानपुर