Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jun 2023 · 2 min read

माँ का अबोला / मुसाफ़िर बैठा

याद नहीं कि माँ ने
कभी अबोला किया हो मुझसे
मुझसे भी यह न हुआ कभी

बस एक अबोला माँ ने किया
अपने जीवन की अंतिम घड़ी में
और फोन पर बतियाने से
साफ़ मना कर दिया था उन्होंने

गाँव पर थी माँ जब
जीवन की अंतिम सांसें गिनती हुईं
गया था पटना से बाल बच्चों समेत मिलने गाँव
हाँ मिलने मात्र
जबकि मुझ संतान से
सेवा शुश्रूषा पाने के
नितांत जरूरी दिन थे वे
लंबे समय से बिस्तर पकड़े माँ के

माँ से विदा लिया था
तो यह कहकर कि
बस लौटता हूँ
तुम्हारी दुलारी पोती को
दिल्ली छोड़कर दिन दो बाद ही

माँ ने मना नहीं किया
उस पोती के जीवन का सवाल था
जिसमें दादी के प्राण बसते थे
और पोती के दादी में
पर यह प्रतिदान पाने का अवसर न था!
माँ ने तो बस, देना ही जाना था
पोती को दी भरे गले सलाह
‘मेरा क्या, दिन दो दिन की मेहमान हूँ
दादी का मरा मुंह भी तुम
भरसक ही देख पाओगी
बेटी, रीत यही है दुनिया की
सुख में ही नहीं घने दुःख और विपत्तियों में भी
मनुष्य का आना जाना कहाँ रुकता!
जा रही हो और कलेजा फट रहा है मेरा’
देखा, आंसुओं की मोती-धार मोटी
माँ के दादी-गाल पर बह रही थी

‘मन लगा कर पढ़ना बउआ,
गाँव की पहली बेटी हो
जो इतनी दूर पढ़ने निकली हो
बेटी जात हो, जुआन, कांच-कुंवार हो तब भी
दिल्ली भेजा है पढ़ने तुम्हारे बाप ने
समूचे घर समाज से लड़ झगड़ कर
मेरा ही बस चलता तो क्या जाने देती!
कुछ भी ऐसा वैसा न करना
उम्मीदों पर बेटे के मेरे, सर-समाज के खरा उतरना’

जिस दिन बेटी दिल्ली जा रही थी
फोन आया घर से भैया का
माँ से बात कराना चाहा
पर माँ ने बात करने से मना किया
उन्हें मेरा उनके पास आने से
कुछ भी कम मंजूर नहीं था
मैंने एकतरफा ही माँ से संवाद किया था
कहा था माँ से
बस, आज ट्रेन पर चढ़ा तेरी लाडली को
कल सुबह घर के लिए
बस पकड़ता हूँ।

बेटी को सी-ऑफ करके ज्यों ही
पटना जंक्शन से डेरा लौटता हूँ
तो घर से फोन पर भैया होते हैं
कहते हैं – चल दी माँ

मैं माँ से किये अपने वादे
निभाने चल देता हूँ घर
घर जो पिता के मेरी अबोध-लरिकाई में ही चले जाने और अब माँ के जाने से
गांव भर रहा गया था

पहली बार हुआ था कि घर पहुंच कर
घर के दरवाजे पर लगी जमघट में मौजूद
किसी बड़े बुजुर्ग को न किया प्रणाम-पाती
न ही माँ के छुए पाँव और
न ही माँ थी सामने हुलस कर अपने जिगर के टुकड़े को
अधीर आतुर पाने को

माँ की छाती से लगकर
लाख रोता विलखता हूँ
माँ का हृदय नहीं पसीजता
पहली और अंतिम बार
इतना काठ-करेजा हो उठती हैं माँ
माँ कुछ नहीं बोलती
माँ का यह अबोला
जिन्दगी भर का साथ हो जाता है।

********

Language: Hindi
259 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr MusafiR BaithA
View all
You may also like:
बाबा मैं हर पल तुम्हारे अस्तित्व को महसूस करती हुं
बाबा मैं हर पल तुम्हारे अस्तित्व को महसूस करती हुं
Ankita Patel
अधरों ने की  दिल्लगी, अधरों  से  कल  रात ।
अधरों ने की दिल्लगी, अधरों से कल रात ।
sushil sarna
स्त्री
स्त्री
Shweta Soni
इंतज़ार मिल जाए
इंतज़ार मिल जाए
Dr fauzia Naseem shad
अपने
अपने
Shyam Sundar Subramanian
Three handfuls of rice
Three handfuls of rice
कार्तिक नितिन शर्मा
कावड़ियों की धूम है,
कावड़ियों की धूम है,
manjula chauhan
मुक्तक
मुक्तक
पंकज कुमार कर्ण
शादाब रखेंगे
शादाब रखेंगे
Neelam Sharma
इश्क़—ए—काशी
इश्क़—ए—काशी
Astuti Kumari
जहां आपका सही और सटीक मूल्यांकन न हो वहां  पर आपको उपस्थित ह
जहां आपका सही और सटीक मूल्यांकन न हो वहां पर आपको उपस्थित ह
Rj Anand Prajapati
जलपरी
जलपरी
लक्ष्मी सिंह
जीवन का लक्ष्य महान
जीवन का लक्ष्य महान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
मौत से बढकर अगर कुछ है तो वह जिलद भरी जिंदगी है ll
मौत से बढकर अगर कुछ है तो वह जिलद भरी जिंदगी है ll
Ranjeet kumar patre
युगों    पुरानी    कथा   है, सम्मुख  करें व्यान।
युगों पुरानी कथा है, सम्मुख करें व्यान।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
ऐसा खेलना होली तुम अपनों के संग ,
ऐसा खेलना होली तुम अपनों के संग ,
कवि दीपक बवेजा
जीवन और मृत्यु के मध्य, क्या उच्च ये सम्बन्ध है।
जीवन और मृत्यु के मध्य, क्या उच्च ये सम्बन्ध है।
Manisha Manjari
छायावाद के गीतिकाव्य (पुस्तक समीक्षा)
छायावाद के गीतिकाव्य (पुस्तक समीक्षा)
दुष्यन्त 'बाबा'
चले ससुराल पँहुचे हवालात
चले ससुराल पँहुचे हवालात
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पढ़ाकू
पढ़ाकू
Dr. Mulla Adam Ali
"सार"
Dr. Kishan tandon kranti
हम हिंदुस्तानियों की पहचान है हिंदी।
हम हिंदुस्तानियों की पहचान है हिंदी।
Ujjwal kumar
SC/ST HELPLINE NUMBER 14566
SC/ST HELPLINE NUMBER 14566
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
*देश भक्ति देश प्रेम*
*देश भक्ति देश प्रेम*
Harminder Kaur
माँ भारती वंदन
माँ भारती वंदन
Kanchan Khanna
*रामपुर दरबार-हॉल में वाद्य यंत्र बजाती महिला की सुंदर मूर्त
*रामपुर दरबार-हॉल में वाद्य यंत्र बजाती महिला की सुंदर मूर्त
Ravi Prakash
हनुमान जयंती
हनुमान जयंती
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
गांधी से परिचर्चा
गांधी से परिचर्चा
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
Loading...