माँ ! कब आएगी ?
माँ ! कब आएगी ?
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पतंग !!!!
नाम सुनते ही…..
उमंग और तरंग !
दोनों ही हिलौरे लेती हैं !!
उत्सुकता चरम पर !
कौतुहल सातवें आसमान पर !!
वो काटा !
वो मारा ! का नाद !!
कभी धड़कनें तेज
तो कभी धीमी……..
क्या इतनी ही परिधि है ?
पतंग बाजी की |
क्या यही चरम मजा है !
मानव जीवन का ||
नहीं !!!!!!!!
यदि देखा जाए
और सोचा जाए……….
तो ये क्षणिक सुख है ,
मानवीय आबादी का !
पर ! मंजर है यह……
पंछियों की बर्बादी का |
जब उड़ते हैं !
उन्मुक्त गगन में
ये निरीह…बेजुबां बेचारे
चुग्गा चुगने ………
अपने बच्चों के लिए
तो क्या मालूम ?
कि लौटेंगे भी या नहीं !
क्या पता ?
कौनसी डोर से ……?
जख़्मी होकर
लहूलुहान से दम तोड़ दे !!
जाने कब टूट जाए ?
उन बच्चों की आस
चुग्गा चुगने की !!
और इंतजार रहे
माँ कब आएगी ??
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डॉ० प्रदीप कुमार दीप