माँ ओ मेरी माँ
माँ ओ माँ मेरी वो तेरा कहना था, बुढापे मे सहारा बताना था |
भुलु भी कैसे भला मैं, तेरा ही तो दिया हूआ ये जीवन बसाना था ||
मेरा वो बचपन भी कितना सयाना था,
तुझे देख के मेरा वो खिलखिलाना था,,
कानो मे तेरे चीखे सुनाई पडती ओ माँ,
तेरे आँचल की लहरों को पाने बुलाना था,,
चिखे भी सुनके तु ही दौडी सी आती थी,,
बलखाती मानो सोच में क्षमा जाती थी,,
सोच की गहराई में आँचल को लगाया था,,
माँ ओ माँ मेरी वो……………………….1
मेरी वो रातो की नींदों में तेरा सुलाना था,
लौरी गाकर के कानों में तेरा वो सुनाना था,,
सोजा बेटा सोजा वो ही तेरा कहना था,
किस्से मैं सिफारिश करूँ भी तो कैसे माँ,
बचपन की पहल हैं मेरी, मुझको जाना हैं,
तेरी गोदी मैं मुझको चैन की निंदे सोना हैं
ओ माँ भुलू भी कैसे वो बचपन जमाना था,
माँ ओ माँ मेरी वो………………………2
मेरे बचपन में तुने कितनी बूँदे गिराई ओ माँ,
उन बूँदो की गहराई में मेरी खुशियां ओ माँ..
की तेरा वो सपना की बेटा कब बडा होगा,
पलकों के सामने नहीं पर बुढापे में होगा,,
सोचूं भी कैसे माँ की भुलू,तेरा खिलौना हूं,
माँ तेरा ये कहना की मैं तेरा तो सोना हूं,,
ब्याँ करूँ भी कैसे मेरा बचपन तेरा देना था,,
माँ ओ माँ मेरी वो……………………… 3
मन्नत भी हैं मेरी हर जीवन में तूही मिले,
दूआ करूँ रबा से तुं सदा मुझ में खिले,,
सुनले मन्नत रबा मेरी माँ तो माँ होती हैं,
सदा बेटे को ममता की छावों में सुलाती हैं,
दूआओ में तेरी फर्याद करूँ ओ मेरी माँ,
खता लिखू तेरे दिये जीवनकी ओ मेरी माँ,,
तुम सदा साथ रहोगी ये ही तो कहना था
माँ ओ माँ मेरी……………………..4
माँ ओ माँ मेरी वो तेरा कहना था, बुढापे मे सहारा बताना था |
भुलु भी कैसे भला मैं तेरा ही तो दिया हूआ ये जीवन बसाना था ||
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां
7300174927