माँ एसी भी होती है।
** मातृ दिवस पर ***
मेरी कलम घिसाई
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माँ तुम कहाँ हो?
मुझे नही पता।
तुम्हने मुझे जन्म देकर,
झाड़ियो में फेंक दिया था।
पर मुझे कुत्तो सुअरो ने ,
नही नोचा.
क्यों कि,
किसी भद्र पुरुष ने ,
झाड़ियों में मुझे देख लिया था।
तब से माँ बनकर पालते रहे है।
आज भी पाल रहे है।
माँ ,ममता ,प्रश्न सब,
मेरे लिए बेमानी है।
किसे महान बोलूं
परेशानी है।
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माँ
मेरी आया माँ ने बताया था।
तुम मुझे दूध नही पिलाती थी।
सो बकरी का दूध पिलाया था।
मैंने बड़ा हुआ तो धाय माँ से
वैसे ही पूछ लिया ।
माँ ने मुझे दूध क्यों नही पिलाया।
वो बोली बेटा ज्यादा तो नही जानती।
पर उनको फिगर का ख्याल था।
बस यही मेरे लिए सवाल था।
तो बता माँ
अब मै बड़ा हो गया
अपने पैरो पर खड़ा हो गया।
किस दूध का कर्ज़ चुकाऊं।
क्या चंद किताबे पढकर
तुम्हे महान बताऊं।
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माँ
घर में आटा नही दाल नही।
ठीक घर के हाल चाल नही।
बापू को शराब की लत है।
तुमको आराम की आदत है।
हम तीनो ,
भाई बहनों की उम्र ,
तीन से आठ ,
हमारे हाथ में,
शनी महाराज का,
कटोरा पकड़ा देती हो।
शाम तक जो भी मिलता
है हथिया लेती हो।
लोग हम पर तरस खाकर
रुपया दो रुपया
रोटी कपड़ा कुछ दे देते है।
उनको भी तुम दोनों ,
ले लेते हो।
सच माँ और बाप ,
दोनों महान है।
धरती पर यही ,
भगवान है।
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माँ
तुमारे हाथ के खाने में
वो रस बरसते है।
कि भगवान भी खाने को
तरसते है।
सब यही कहते है।
पर मुझे क्या पता माँ
कितना सच कहते है।
मैंने तो आज तक
सिर्फ होस्टल का ही
खाना खाया है।
कभी छुट्टियाँ लगी
तो जब भी घर आया।
काम वाली बाई ने ही
पकाया खिलाया,
यहाँ तक कि सर दर्द भी हुआ,
तो आप तो किटी पार्टी, क्लब
आदि में होती थी।
तो सिर भी बाई जी ने ही दबाया।
माँ वाकई किताबो में,
माँ के लिए क्या
कुछ नही लिखा।
पर वो सब कुछ मुझे,
तुम में क्यों नही दिखा।
खैर माँ फिर भी,
आप वाकई महान है।
मुझे गर्भ में नही मारा।
यही क्या कम है,
जो
दिखलाया जहान है।
माँ
मै निशब्द ।
**–**-**मधु गौतम