माँ-एक फ़रिश्ता
ख़ुदा ने जब माँ को बनाया होगा
ख़ुद को कदमों पे ही पाया होगा
ममता का आँचल जब थमाया होगा
बच्चा बन खुद आजमाया होगा
जन्नत को कदमों पे बसाया होगा
सुकूँ सारे जहाँ का पाया होगा
माँ का दिल जब लगाया होगा
प्यार भी ख़ुद माँ का चुराया होगा
अपनी कृति देख इतराया होगा
मन ही मन कितना मुस्काया होगा
माटी सादगी की फिर लाया होगा
रब ने अपनी प्रतिमूर्ति फिर बनाया होगा
आँचल में निश्छल इठलाया होगा
फरिश्तों से उसूल मंगाया होगा
अनिल कुमार “निश्छल”
हमीरपुर (उ० प्र०)