माँ अमूल्य कृति
नौ महीने कोख में अपनी जिसने जिलाया है मुझे
गर्भ में प्राण देकर अवचेतन से जगाया है मुझे
प्रसव की पीड़ा उठा के इस दुनिया में लाया है मुझे
सबसे पहले अपने ही हाथों में खुशी से उठाया है मुझे
बाद उसके दूध भी गोद में लेकर पीलाया है मुझे
अपनी बाहों में उठाकर प्यार से खुब खेलाया है मुझे
अपने होठों से मीठी लोरियों को भी सुनाया है मुझे
हाथ पकड़कर मेरे इस जहां में चलना सिखाया है मुझे
स्वयं भूखी रहकर भी भरपेट भोजन खिलाया है मुझे
हर चोट पर सहम कर अपने सीने से लगाया है मुझे
हर चीज की समझ को खुलकर यहाँ बताया है मुझे
जीवन की पाठशाला में गुरु बनकर खुद पढ़ाया है मुझे
दर्द सहकर भी कैसे चुप रहना इतना भी समझाया है मुझे
लड़कर स्वयं लड़ना है कैसे ये भी कर दिखाया है मुझे
अपनेपन की आग में ढालकर अपनत्व में गलाया है मुझे
क्या होती है माँ?दुनिया में भगवान ने ये जताया है मुझे
सच कहूँ तो मेरी माँ ने स्वयं अपने ही हाथों से बनाया है मुझे
उस माँ के श्रीचरणों में ही स्वर्ग नजर आया है मुझे
धन्य हूँ मैं इस धरा पर जो माँ ने अपनाया है मुझे
माँ की प्रेरणा ने लेखनी से इन पंक्तियों को लिखवाया है मुझे
डॉ.आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छग