माँ।। क्या लिखूँ मैं आपके लिए।
माँ।। क्या लिखूँ मैं आपके लिए।
यूँ तो दुनिया की कोई क़लम या शायर तेरे कारनामों को कागजों में समेत ना सका,
पर चलो एक नाकाम कोशिश मैं भी करता हूँ,आज कुछ अपनी भावनाये अपने माँ के नाम करता हूँ।।
नही पता क्या लिखूंगा मैं आपके लिए ,नही पता क्या लिख पाऊंगा मैं आपके लिए,
चल मैं यही से शुरुआत करता हुँ,की क्या हो आप मेरे लिए।
तो जिन आंखों ने कुछ देखा ना,उन आंखों की पहली दुनिया हो आप,
जिन लबों ने कुछ बोला ना हो,उन लबों के पहले अल्फ़ाज़ हो आप,
शब्दकोश का एक छोटा सा शब्द पर मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी मंज़िल हो आप।।
कहो ना माँ,क्या लिखूं आपके बारे में…
बचपन में बेजुबाँ था मैं पर मेरी हर बात,तकलीफ को समझ लेने वाली ममता की नई तकनीक हो आप,
बोलो ना माँ,क्या लिखूं आपके बारे में…
याद आती है मुझे वो धुंधली यादें जब मैं अपनी शैतानियो में मशगूल हुआ करता था,
पापा की डाँट से आप ही तो बचाती थी,कैसे मेरे सारे शैतानियो को अपने नाम कर जाती थी,
आप ही तो थी जो पूरी दुनिया से मेरी गलतियों के बाद भी लड़ जाती थी।
कहो ना माँ,क्या लिखू आपके बारे में…
याद आता है मुझे जब मैं अपनी ही गलतियों की सज़ा पर आपसे नाराज़ हो जाता था,
अपनी असफलताओं पर मिले पिता की डाँट पर मैं आपसे बात नहीं कर पाता था
तब आपही तो थे जो अपने इस लाल की नाराज़गी को चंद पलो में दूर कर जाते थे,
जब भी फेरते थे हाथ अपनी गोद में मेरे सिर को लेके
क्या बताऊ मैं माँ उस पल के बाद मैं सारी दुनिया भूल जाता था,
बोलो ना माँ ,क्या लिखू आपके बारे में…
मां आपने बचपन से अब तक हज़ार तोहफ़े दिए मेरी जिन्दगानी को,
पर आज मन आपसे शिकायतों का है..
पता है आपको आज मैं रोया हूँ,
क्योकि आपकी दी हुई दुनिया मैं आप बिन अकेला हूँ,
आपने दुनिया की रीत से मुझे वाकिफ़ तो कराया,
पर इस दुनिया के मेले में मैं कही खो गया हूँ,
आपको ढूंढता हूँ मैं हर जगह,पर सपनो में आपकी आवाज़ ही आती है आप नही आती,
सोचता हूँ दौड़ कर आपके पास आ जाऊँ,रख लू आपके गोद में अपना सिर और जहाँ को भूल जाऊँ,
पर फिर मुझे पिता की परवरिश औऱ आपके दिए संस्कार याद आते है,
की करनी है फ़तह मुझे दुनिया को आप दोनों के लिए।
आपका दुलार ममता मुझे आपके पास बुलाते है,पर आपके दिए संस्कार मुझें दुनिया से लड़ने को कह जाते है,
बोलो ना माँ,क्या लिखू आपके बारे…
रातो को जब भी नींद नही आती या फिर दिल अकेले में रोता है,
मुझे याद आपकी बहुत आती है,माँ
एक आप ही तो हो इस सारे जहाँ में जो मेरी सारी गलतियों को माफ कर जाते हो,
बाकी तो छोड़ जाते इस जहां में एक दूसरे को अकेले पर आप हो तो हो जो सपनो में भी अपनी दुवाओं की बरसात कर जाते हो,
सच कहुँ अगर मैं आपके बारे में तो आप मेरी पहली मोहब्बत हो मेरी जिंदगी की जिसमे मेरे नाकाबिल मोहब्बत के बदले में भी बेपनाह-बेपरवाह प्यार मिला।
कहो ना माँ,क्या लिखू आपके बारे में…
चलो यही से शुरुआत करता हु,की आप ऐहसास हो इस जहाँ में मेरे होने की,
करता हूँ तुझसे कितना प्यार ये शब्दों में भले ही बयां ना हो पाया,
पर यक़ीन कर तुझे शब्दो में बयाँ किया ही ना जा सकता,इतनी बड़ी है तेरी शख्शियत की आपको कागजो में समेटा ही ना जा सका।।
चरण स्पर्श,माँ।।
दीपक ‘पटेल’