माँ,बस एक लकीर हूँ मैं
आपके आॅचल से उठती एक
अदृश्य सी सुगंध की मुरीद हूँ मैं।
सौम्य से चेहरे पर उठती हल्की सी
मुस्कान पर मुस्काती ख़ुशनसीब हूँ मैं ।
आँखों में बंद ,अश्कों के आईने में
झलकती तस्वीरों में से एक तस्वीर हूँ मै।
दुआ,पूजा,आशीष के हर एक गारे
ईंट से चुनी,आपकी एक प्राचीर हूँ मैं ।
सही गलत,अच्छे-बुरे का फ़र्क बतलाती
कड़ियों में गूँथी एक मज़बूत जंजीर हूँ मैं ।
आपकी शिक्षा की शिलाओं पर
घिसी ,चमकाई ,धारदार शमशीर हूँ मैं ।
नहीं देख सकती खुद को आपसे अलग ,
आप हैं जीवंत मूरत , छाया मात्र हूँ मैं ।
आपके अस्तित्व को उकेरने की तमीज़ नहीं मुझमें
आपके हाथों से खींची ,बस एक लकीर हूँ मैं ।
पल्लवी गोयल
थाने,महाराष्ट्र