माँझी
माँझी की धूल झाड़ दे,
जो बीत गया उसे बिसार दे,
अपनी उम्मीदों को इक नया परवाज़ दे,
अतीत को कमज़ोरी न मान,
उसे नया ही इक आग़ाज़ दे,
जो बीत गया उसे बिसार दे,
अंधेरों से निकल, रोशनियों को तू आवाज़ दे,
ढंग अपने बदल, अपनी शैली को इक नया अन्दाज़ दे,
जो बीत गया उसे बिसार दे,
माना की सफ़र है दुशवारियों भरा,
न घबरा इन चुनौतियों से,
तू ख़ुद इन्हें आवाज़ दे,
आगे बढ़, रख हौंसला,
आशा का दामन थाम ले,सबको नई मिसाल दे,
जो बीत गया उसे बिसार दे,
अपने पर आने वाले पत्थर से,
तू इमारत नयी उसार दे,
बोता चल उम्मीदों के बीज़,
बंजर धरती को तू इक नयी बहार दे,
जो बीत गया उसे बिसार दे,
माँझी की धूल साफ़ कर,
नए सपनों को नए पर,नई उड़ान दे,
दुखों की बना इक पोटली,
सुखों के समंदर में उसे उतार दे,
जो बीत गया उसे बिसार दे….