महोत्सव
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे
उत्सवधर्मिता के संक्रमण से गुजर रहे,
आपदा को अवसर बनाने मे महारथ
भ्रष्टाचार की गंगा का उद्गम खोज रहे।
विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका
चौथे पत्रकारिता को मुगालते मे भुला रहे,
क्षरणकाल, चारों कदाचार के प्रभाव मे
ये अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रहे।
जनता का जनता द्वारा जनता के लिए
अब भी दिवास्वप्न पिछ्त्तर साल हो रहे,
प्रधानन्यायाधीश ने मुद्दा उठाया चौथे पे
ये लोग सही गलत समझ से परे हो रहे।
स्वतंत्रता नही अपना कार्य करने को
अभियोजक सरकार नियंत्रित हो रहे,
पूरी प्रक्रिया हो आमूल चूल परिवर्तित
स्वतंत्र चयनसमिति दबाव से मुक्त रहे
पत्रकारव्यवसायी चलें रपटीली डगर
सुर्ख स्याह कजरारा धंधा चलता रहे,
मुल्क की आंख पे गहरी पट्टी चढ़ी
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर