महिला ने करवट बदली
यह चारदीवारी पिंजरा मेरी कैद बना के लाया,
दे गज भर लंबा घूंघट, मुझे घर में ही अछूत बनाया ।
पति संगिनी बन जीवन में हर कर्म में हाथ बटाती,
संतान जनेन्दरी बनकर परिवार का भार उठती।
दिन रात कर जगराता उपवासो में समय बिताया,
दे गज भर लंबा घूंघट मुझे घर में ही अछूत बनाया ।
पिसती रही चक्की और दहेज के दो पाटो में,
कभी अग्नि में झौंक जलाया, कभी पटका जल घाटो में,
परिवार के ताने काँटो ने, मेरी छलनी कर दी काया,
दे गज भर लंबा घूंघट मुझे घर में ही अछूत बनाया ।
मै कब से दबी पड़ी थी, पर वक़्त ने करवट बदली,
बेशक चाल थी धीमी, पर कुछ तो सुन ली,
मै बहस का विषय रही, हर कोई मुझ से टकराया….
दे गज भर लंबा घूंघट, मुझे घर में ही अछूत बनाया ।
स्वतंत्र देश में हमको परतंत्र से मिली आज़ादी,
शिक्षा का ले सहारा, घूँघट को बाय-बाय कर दी,
इच्छा बुलंद की दिल में सर उप्पर उठाने की,
शिक्षा को गले लगाया, दी हिम्मत कदम बढ़ाने की,
परिवार नियोजन अपना के, अब लघु परिवार बनाया,
संविधान बना है रक्षक,अधिकार समान मिले है,
महिला आरक्षण पाकर, हर फील्ड मे कदम बढे है,
दे गज भर लंबा घूंघट, मुझे घर में ही अछूत बनाया ।
शारदा,कमला,गौरी,गृह देवी का दर्जा पाया,
मुझे गज भर लम्बा घूँघट, अब जरा भी मन ना भाया,
अब चारदीवारी पिंजरा, खुद टूट बाहर ले आया।
वो गज भर लम्बा घूँघट, अब खुली हवा लहराया।।