महिला दिवस बीत गया
महिला दिवस पर
महिलाओं के सम्मान में
जगह जगह आयोजन हुए
कहीं आश्वासन दिए तो
कहीं लंबे चौड़े भाषण हुए
उन्हें धरती के तुल्य सहन शील,
विशाल सागर के सदृश,
गुणों की खान,
आकाश की भांति
ममता का आंचल फैला कर
सुख देने वाली बताया
सिर पर कफ़न बांध
जन्म देने वाली जन्मदात्री,
मुस्कान युक्त,
सदाचारी, सुलक्षणा,
शालीनता की मूर्ति,
अन्नपूर्णा से नवाजा गया
कित्तूर की रानी चेन्नमा,
रानी लक्ष्मी बाई,
पन्ना धाय,कल्पना चावला,
पी टी ऊषा, मैरी कॉम,
लता जी की
मिसाल दी गई
बहुत गर्वित हुई
अपने महिला होने पर
बेटी की मां होने पर
अभिमान हुआ
कविताओं के माध्यम से
महिलाओं का गुणगान हुआ
तभी कानों में स्वर
गूंजने लगा
अरे ! सोती ही रहोगी
या कुछ काम भी करोगी?
हसीन सपना टूट गया
खुमारी अभी उतरी नहीं
महिला दिवस बीत गया
आज दस मार्च है
अब हकीकत से रूबरू हो जाएं
अपनी छोटी सी दुनियां,
गृहस्थी में रम जाएं
काश ! महिला दिवस
एक दिन का ना होकर
तीन सौ पैंसठ दिन का होता
महिला संबल है
घर की बुनियाद है
सबका मनोबल बढ़ाती है
कदम से कदम मिलाकर चलती है
फिर क्यों साल का एक दिन
उसके हिस्से में आता है?
जब कि तीन सौ पैंसठ दिन
अपने कर्तव्यों के प्रति
समर्पित रहती है।
दीपाली कालरा
10 मार्च 2022