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30 Dec 2022 · 1 min read

महाशून्य

हो जो अग्नि मधुर चांदनी
निस कपित मानुष थर्राता
वृक्षों की शाखों पर बैठा
मिथ्या पंछी रोता गाता

देख सलिल के झरनों को
बैठा भौरा कुमुदनी पर
शलखंडों को तोड़ तोड़ कर
पर पीड़ा से चूर चूर कर
इस धारा के तेज वेग में
जल कहां चला जाता

नित मास अमावस की रातों में
मिथ्या होती मधुर चांदनी
घोर गर्जन हठयोगियों का
महासून्य है क्यूं गाता ।।

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 284 Views
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