महाशिवरात्रि
गौरी विवाह को चले भोले नाथ
अजब गजब बारात लाए हैं साथ साथ
बदला नहीं स्वयं का स्वरूप
अभी भी दिगंबर,स्वयंभू रूप
अनंत,अनादि,ब्रह्मांड शंकरा
गला गरल , तन बाघंबरा
नंदी पर बैठे भोले भंडारी
डमरू बजा रहे त्रिपुरारी
वर का कोई वेष भूषा नहीं
कोई सगा संबंधी भी नहीं
जटा बीच सुरसरी शोभायमान
शशि भी ,शिखर मध्य विराजमान
हाथ मध्य शोभित त्रिशूल शिव के
भाल मध्य त्रिपुंड,त्रिनेत्र शिव के
सर्वांग, भस्म रमाए हैं शंकर
गले लटकाए हैं भुजंग विषधर
भूत,प्रेत पिशाच ,बाराती झूम रहे
डमरू बजा नटराज भी नाच रहे