महावर
कंबु सुराही क्षीण कटि,यौवन झिलमिल छाँव ।।
कंज-नयन चंपा-बदन, भरे महावर पाँव।
भावार्थ –
सुन्दरी के सौन्दर्य का वर्णन अत्यंत उत्कृष्ट शब्दों में किया गया है – सुन्दरी की गर्दन सुराही के समान सुन्दर है ,उसकी कमर अत्यंत क्षीण अर्थात पतली है ,ऊपर से उसका यौवन झिलमिल छाया के समान है अर्थात अत्यंत सुखद ।प्रथम पंक्ति
द्वितीय पंक्ति-उसके नयन स्वाभाविक रूप से काले हैं ,उसका पूरा शरीर चंपा पुष्प के समान सौन्दर्य पूर्ण है ऐसी सुन्दरी जब अपने पैरों में महावर भरती है तो वह सौन्दर्य की देवी सी प्रतीत होती है अर्थात उसके सौन्दर्य में दोगुनी वृद्धि होती है ।
ऐसे ही दोहे को गागर में सागर कहते हैं ।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
स्वरचित©®
वाराणसी