मुझे कहते सभी हिन्दी
मुझे कहते सभी हिन्दी सखी उर्दू हमारी है
सुरीली हूँ मैं कोयल सी ज़माने को वो प्यारी है
कहीं भारी न पड़ जाऊँ डरे यारो ये अंग्रेजी
महारानी मैं भारत की , वो शहज़ादी हमारी है
ग़ज़ल गीतों में करते हम, मुहब्बत की सदा बातें
चले जादू हमारा जब चढ़े अदभुत ख़ुमारी है
झगड़ते हो क्यूँ आपस में क्यूँ दुश्मन तुम बने बैठे।
मैं उर्दू भी तुम्हारी हूँ वी हिन्दी भी तुम्हारी है।
अज़ब रिश्ता है दोनों का, बँधे इक डोर से हम तो
ख़ुदा के हम सभी बन्दे डगर इक ही हमारी है।
भला सीमा क्यूँ खींची है करें फरियाद हम ‘माही’।
इबादत कर रही उर्दू बनी हिन्दी पुजारी है।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’