महाराणा
महाकाल ज्यों जटा खोल टूटा हो अरि पर,
त्यों राणा की चंद्रहास गरजी बैरी पर।
बज उठी दुंदुभी और साथ रणभेरी बोले,
वीरों का देख समर मही अंबर डोले।
जब चढ़ा अश्व लेकर छलांग हाथी पर ,
तब दिखा मुगल को काल स्वयं छाती पर।
बीच समर में कैसा अद्भुत दृश्य बना,
हाथी की छाती पर कैसे अश्व तना।
जब राणा ने चीरा मुग़ल तुरंग समेत,
लश्कर का लश्कर ही पूरा हुआ अचेत।
सहम गये रण मे अकबर के सैनानी,
दोधारी तलवार चली उतरा सब पानी।
जिसके भाले की नोक खून का भोग लगाएं,
ऐसे प्रलयंकर महाकाल से कौन बचाए।
शूर साहसी वीर बांकुरा क्या क्या बोलूं,
स्वयं काल है कैसे रण का कौशल तोलूं।
कट गये शीश धड़ लड़े मृत्यु भी दूर खड़ी थी,
साहस की अमर कहानी समर में शीष झड़ी थी।
✍️ दशरथ रांकावत ‘शक्ति’