महायुद्ध
हो रहा है युद्ध,
महाभीषण युद्ध,
कट रहे हैं अंग
क्षण तार तार हो रहा है।
है विद्रोह किसका?
किसकी गलती?
नर संहार हो रहा है।
बरसा है व्योम भंयकर
बूंदों से नहीं,
बारूद की आग लिए
महाविनाश है
मचा है कोहराम,
हाहाकार हो रहा है।
सामर्थ्य है किसमें बड़ा
दिखाने को
बहा रहे हैं दरिया
खून की बाढ़ लिए
दहक रही है धरा
स्तब्ध संसार हो रहा है।
यही है कलयुग
नहीं सुनता कोई
बिछी है लाशें
बुझे हैं दीये
मौन है सब यहां
अधर्म सवार हो रहा है।
तोड़ रहे हैं नियम
लागू है जो सब पर
अवैध हथियार लिए
शांति की वार्ता में
उठे हैं कई हाथ, किन्तु
व्यापार हो रहा है।
हो रहा है महायुद्ध
हां! अब विचार हो रहा है।।
रोहताश वर्मा ” मुसाफ़िर “