महाभुजंगप्रयात छंद (वर्णिक)
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!! श्रीं !!
सुप्रभात ! जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
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महाभुजंगप्रयात (वर्णिक छंद)
8 यगण (122)
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कभी भी नहीं छोड़ना हाथ माते,
करें प्रार्थना मान लीजे हमारी ।
बचा लो हमें घेरने आ रही है ,
शिकारी बनी मात माया तुम्हारी ।।
हमें बुद्धि दो ज्ञान दो माँ भवानी ,
थमा दो हमें लेखनी की दुधारी ।
जियें छंद में लीन होके सदा ही,
कृपा कीजिये मात कल्याणकारी ।।
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कहीं और जाऊँ बताओ मुझे क्यों,
सदा ही मिला है तुम्हारा सहारा ।
तुम्हीं जन्म देतीं तुम्हीं पालती हो,
तुम्हीं ने दिखाया सदा ही किनारा ।।
बड़ी देर से टेरता मात मेरी,
नहीं छोड़ जाऊँ कभी द्वार प्यारा ।
खड़ा द्वार टेरूँ पुकारूँ तुम्हें माँ,
गहो बाँह को ज्योति ने है पुकारा ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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