महाभारत युद्ध
हरि से जूझने का मेरा इरादा न था, ऐसे मोड़ पर मिलेंगे वादा न था।
रास्ता रोक कर वह खड़े हो गए, यों लगा ज़िन्दगी से बड़े हो गए।
भीम पौत्र – मोरवी पुत्र बर्बरीक हुँ, कलियुग में ही श्याम नाम हो गया
धर्म अधर्म, सत्य असत्य का न भान है, मैं तो हारे का श्याम हो गया
हाथी घोड़ा न कोई सेना है, महाभारत युद्ध में शक्ति प्रदर्शन होना है
माधव की माया उनके सारे सूत्र हैं, मेरे तरकस केवल तीन ही तीर हैं
अपना मेरा ना कोई पराया है, मेरा वचन हमेशा निर्बल का साथ देना है
मैंने माधव को गुरु माना है, तो गुरु दक्षिणा में शीश दान मांगा है
प्रभु जब बात हो रणनीतियों की, मैं भी कृष्ण कन्हैया हो जाऊँ
गदा और चक्र से नहीं, तीन तीर में, युद्ध विजय कर दिखलाऊँ
पुनः जीवन की व्याख्या न हो, मैं यही जीवन सफल कर जाऊँ
पति, पिता व पुत्र, सखा की पहचान नहीं, मैं हारे का श्याम हो जाऊँ
युद्ध प्रतिशोध नहीं शकुनि का, न हठ दुर्योधन का मिट्टी में मिल जाने की
युद्ध प्रतिउत्तर नहीं द्रोपदी का, न धर्म- अधर्म पर युधिष्ठिर का धर्मराज हो जाने की
महाभारत युद्ध तो पार्थ संग कृष्ण का, नाश मनुष्यता का हो जाने को
दोनों शत्रु नही आपस लड़े नहीं, युद्ध कोई जीता नहीं, कोई हारा भी नहीं
इतना सुन हरि मुस्काये, कर्म कलियुग का फल होगा – कर्म नहीं निष्फल होगा
मैं आदि, मैं अंत, मैं ही अनंत हूँ, सब जन्म मुझसे पाते मुझमें ही मिल जाते हैं
धर्म- अधर्म या सत्य- असत्य नहीं, कलियुग में केवल हार- जीत ही होता है
मनुष्यता का अन्त कैसा, जीव भिन्न- भिन्न भेष बदलता रहता है
जीवनचक्र से पार जो होता, वो मुझसे जन्मा मुझ से ही मिल जाते हैं
पिता, पति व पुत्र, सखा सब, रिश्ते नाते यहीं पाया, यहीं रह जाते हैं
मुट्ठी मीच मिला जीवन हाथ खोल के जाता है, साथ दान ही जाता है
निस्वार्थ भाव से किया जो दान, मानव भवसागर से पार हो जाता है
शीश दान किया जो मुझको, कल्युग मे मेरे नाम से पूजा जायेगा
मेरे नाम से ही तुमको, हारे का श्याम खाटू नर पुकारा जायेगा।।
रचयिता: अनिल चौबिसा
चित्तौड़गढ़ (राज.) 9829246588