महाभारत जारी है
अपने अपने कुरुक्षेत्र में
हर एक खड़ा है।
फ़र्क़ नहीं छोटा है
या वो बड़ा है।
कोई शहसवार है
कोई पैदल तैयार है।
किसी के साथ हैं भीष्म
किसी का हाथ थामे कृष्ण।
आज भी अपने ही
रच रहे हैं चक्रव्यूह।
छटपटा रहे हैं भीतर
आज भी कई अभिमन्यु।
कोई अकेला ही डटा है
ज़िंदगी के रण में।
लड़ रहा है युद्ध
कभी अपनों के
कभी दूसरों के
कभी स्वयं के विरुद्ध।
तो आओ समझें भावनायें
सामने वाले की भी।
न हों बेवजह
किसी से भी क्रुद्ध।
जाने लड़ के आया हो
वो आज कौन सा युद्ध।।
**** धीरजा शर्मा***