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9 Jun 2024 · 1 min read

महाभारत का युद्ध

युद्ध की विभीषका के उपरांत
यदि पूछा जाता कुंती से
क्या अब भी मूलयवान है
उसके लिए
कर्ण जन्म का रहस्य
तो शायद
दहल जाती
द्रोपदी से पूछा जाता
क्या अतिथेय सम्मान की मर्यादा तोड़
कर पाई अपने अहम को शांत
तो रो देती
और सत्यवती के पिता
जीवन भर तैयार हो जाते
भिक्षा पर भरण के लिए
यदि युद्ध की विभीषका
से हो जाते परिचित
और धृष्टराष्ट्र
अपने मन पर
पुत्रों के शवों का शोक
ढोने से बच जाते
यदि जोड़ पाते अपने मन को
सच्ची सबोध राहों से
मनुष्य
ने सरलता को छोड़
जब भी
विषमता अपनाई है
तो
हर बार युद्ध की ही ठोकर खाई है
चाहे फिर वह युद्ध
घर में हो
मोहले में हो
या
फिर विश्व में
रणभेरी सदा कुंठाओं ने ही
बजाई है।

शशि महाजन – लेखिका

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