महाप्रयाण
माया , आसक्ति , काम, क्रोध ,लोभ, अहंकार सब मानव निर्मित बंधन है ,
परोपकार , प्राणी मात्र से प्रेम, आत्मज्ञान , संवेदना , निर्विकार भाव, सब मानव उत्थान के साधन है ,
जीवन एक भवसागर है , काया उसमें तरण करती हुई नौका है , जो समय के थपेड़ों को सहते हुए
आगे बढ़ती है ,
धैर्य की पतवार , आत्मविश्वास का संबल एवं दूरदृष्टि की सोच इस नौका को अवसाद रूपी चट्टानों से टकराकर मनोबल टूटकर बिखरने से बचाती है ,
नकारात्मक लहरों से सतत् सामना करने के लिए सकारात्मक सोच साहस संचरित कर षड्यंत्र रुपी
भंवर में नौका को डूबने से बचाती है ,
निस्पृह त्याग एवं बलिदान मानव जीवन को
सार्थक एवं श्रेष्ठ बनाकर
इस महाप्रयाण को सफल बनाती है।