महात्मा बुध
महात्मा बुद्ध
ईसा पूर्व कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोधन की रानी महामाया देवी की कोख से पूर्णिमा के दिन बालक का जन्म नेपाल के लुंबिनी वन में ईसा पूर्व 563 को हुआ। उस समय महारानी महामाया देवी अपने मायके देवदह जा रही थी।
इसी दिन पूर्णिमा को 588 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के नीचे जाना कि सत्य क्या है ?और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में विदा कह गए।
बुध का जन्म का नाम सिद्धार्थ रखा गया। जन्म के 7 दिन बाद उनकी माता का देहांत हो गया। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया।गौतम बुद्ध शाक्यवंशी क्षत्रिय थे। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का 16 वर्ष की उम्र में दंडपाणी शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम राहुल रखा, बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुध के भिक्षु बन गए।
बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोधन से कहा कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध बनने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्याति समूचे संसार में अनंत काल तक कायम रहेगी। राजा शुद्धोधन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आसपास भोग विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो।
कहते हैं कि एक बार वे शाक्यों के संघ में सम्मिलित होने गए। वहां उनका वैचारिक मतभेद हो गया। मन में वैराग्य भाव तो था ही इसके अतिरिक्त क्षत्रिय शाक्य संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखें। एक वे फांसी चाहते हैं या देश छोड़कर जाना। सिद्धार्थ ने कहा कि जो आप दंड देना चाहे शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और हमें दंड भोगना पड़ेगा । तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें मैं सन्यास ले कर चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा इससे हम दोनों की इच्छा पूरी होगी। आधी रात को सिद्धार्थ अपना महल त्याग कर 30 योजन दूर अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे, वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केस काट कर खुद को सन्यस्त कर दिया। उस समय उनकी उम्र 29 वर्ष की थी। कठिन तप के बाद 35 वर्ष की उम्र में 528 ईसा पूर्व उन्हें वटवृक्ष के नीचे बोधी ज्ञान प्राप्त हुआ और वह बुद्ध बन गए।
कुछ लोग कहते हैं श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णु पुराण में हमे शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के दो पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया उसके वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए जो की कुश की 50 वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे ।इन्हीं शल्य की लगभग 25 वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे ,इसका क्रम इस प्रकार बताया गया है।
शल्य के बाद बहत्क्षय,ऊरुक्षय,बत्सद्रोह, प्रतिव्योम ,दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च ,भानुरथ, प्रतिताश्व, सुप्रतीत,मरुदेव,सुनक्षत्र,किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण ,सुमित्र, बृहदरज, धर्म ,कृतज्जय,व्रात, रणज्जय ,संजय ,शाक्य शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ, राहुल। राहुल कोलांगल भी लिखा गया है राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षद्रुक कुलक, सूरथ ,सुमित्र हुए।
भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं मैत्रेय से पुनर्जन्म लूंगा। तब से 25 सौ साल लगभग बीत गए हैं लेकिन कुछ कारणवश वे जन्म नहीं ले पाए। अंततः थियोसॉफिकल सोसायटी ने जे कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के सारे इंतजाम किए थे, लेकिन वह प्रयास भी असफल हुए। अंततः ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी। उस दौरान जोरबा द बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो के वही देह छोड़ने से पूर्व बुद्ध के अंतिम वचन थे आप दीपो भव: सम्मसति।
अपने दीए खुद बनो स्मरण करो कि तुम खुद भी एक बुद्ध हो।
बुध के प्रमुख गुरु–गुरु विश्वामित्र ,आलार कलाम, उद्याका रामापुत्त थे। जबकि बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य आनंद ,अनिरुद्ध, महाकश्यप ,रानी खेमा ,महा प्रजापति, भद्रिका ,भृगु, देवव्रत , किंबाल और उपाली थे। दूसरी और बौद्ध धर्म के प्रचारकों में प्रमुख रूप से अंगुलिमाल, मिलिंद,सम्राट अशोक, ह्वेन त्सॉन्ग ,फा श्येन , ईजिंग ,हे चो ,बौधिस्त्व ,विमल मित्र, वैंदा ,उपयगुप्त बज्रबोधी, अश्वघोष, नागार्जुन ,चंद्रकीर्ति ,मेत्रेयनाथ ,आर्य ,असंग ,वसुबंधु ,स्थिरमति, दिग्नाग आदि।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश